सोमवार, २७ जुलै, २०१५

ईश्वर कण

                                                                          ईश्वर कण 
कण त्वरकों मे  सूक्ष्म कणों के टकराने से  भारी ऊर्जा का निर्माण होता है।जेनेवा में महाप्रयोग से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्हें हिग्स बोसोन या ईश्वर कण की एक झलक मिली है। समझा जाता है कि यही वो अदृश्य तत्व है जिससे किसी भी मूलभूत कण(फर्मीयान अथवा बोसान) को द्रव्यमान मिलता है।
लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी निर्णायक प्रमाणो के लिए उन्हें आने वाले महीनों में अभी और प्रयोग करने होंगे।
पिछले दो वर्षों से स्विट्ज़रलैंड और फ्रांस की सीमा पर 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में अति सूक्ष्म कणों को आपस में टकराकर वैज्ञानिक एक अदृश्य तत्व की खोज कर रहे हैं जिसे हिग्स बोसोन या ईश्वर कण(god particle) कहा जाता है। इसे ईश्वर कण इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यही वह अदृश्य-अज्ञात कण है जिसकी वजह से सृष्टि की रचना संभव हो सकी। अगर वैज्ञानिक इस तत्व को ढूँढने में कामयाब रहते हैं तो सृष्टि की रचना से जुड़े कई रहस्यों पर से परदा उठ सकेगा। इस शोध पर अब तक अरबों डॉलर खर्च किए जा चुके हैं और लगभग आठ हज़ार वैज्ञानिक पिछले दो वर्षों से लगातार काम कर रहे हैं।
कैसे हो रहा है महाप्रयोग? विशाल हेड्रन कोलाइडर में, जिसे एलएचसी या लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर कहा जा रहा है, कणो को प्रकाश की गति से टकराया गया है जिससे वैसी ही स्थिति उत्पन्न हुई जैसी सृष्टि की उत्त्पत्ति से ठीक पहले बिग बैंग की घटना के समय थी। 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में अति आधुनिक उपकरण लगाए गए हैं। महाप्रयोग के लिए प्रोटॉनों को 27 किलोमीटर लंबी गोलाकार सुरंगों में दो विपरीत दिशाओं से प्रकाश की गति से दौड़ाया गया।
वैज्ञानिकों के अनुसार प्रोटोन कणों ने एक सेकंड में 27 किलोमीटर लंबी सुरंग के 11 हज़ार से भी अधिक चक्कर काटे, इसी प्रक्रिया के दौरान प्रोटॉन विशेष स्थानों पर आपस में टकराए जिसे ऊर्जा पैदा हुई। एक सेंकेड में प्रोटोनों के आपस में टकराने की 60 करोड़ से भी ज़्यादा घटनाएँ हुईं, इस टकराव से जुड़े वैज्ञानिक विवरण विशेष निरीक्षण बिंदुओं पर लगे विशेष उपकरणों ने दर्ज किए, अब उन्हीं आँकड़ों का गहन वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा रहा है।
प्रति सेकंड सौ मेगाबाइट से भी ज़्यादा आँकड़े एकत्र किए गए हैं, वैज्ञानिक यही देखना चाहते हैं कि जब प्रोटोन आपस में टकराए तो क्या कोई तीसरा कण मौजूद था जिससे प्रोटोन और न्यूट्रॉन आपस में जुड़ जाते हैं, परिणामस्वरूप मास या आयतन की रचना होती है।
प्रयोग की अहमियत
इस प्रयोग से जुड़ी डॉक्टर अर्चना कहती हैं,
“प्रकृति और विज्ञान की हमारी आज तक की जो समझ है उसके सभी पहलुओं की वैज्ञानिक पुष्टि हो चुकी है, हम समझते हैं कि सृष्टि का निर्माण किस तरह हुआ, उसमें एक ही कड़ी अधूरी है, जिसे हम सिद्धांत के तौर पर जानते हैं लेकिन उसके अस्तित्व की पुष्टि बाकी है। वही अधूरी कड़ी हिग्स बोसोन है, हम उसे पकड़ने के कगार पर पहुँच चुके हैं, हम उसे ढूँढ रहे हैं, इसमें समय लग सकता है, हमारे सामने एक धुंधली तस्वीर है जिसे हम फोकस ठीक करके पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं”।
यह इस समय दुनिया का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग है, डॉक्टर अर्चना कहती हैं,
“अगर हमें ईश्वर कण मिल गया तो साबित हो जाएगा कि भौतिकी विज्ञान सही दिशा में काम कर रहा है, इसके विपरीत यदि यह साबित हुआ कि ऐसी कोई चीज़ नहीं है तो काफ़ी कुछ नए सिरे से शुरू करना होगा, विज्ञान की हमारी समझ को बदलना होगा।”
आख़िर क्या है हिग्स बोसान?
जब हमारा ब्रह्मांड अस्तित्व में आया उससे पहले सब कुछ अंतराल में तैर रहा था, किसी चीज़ का तय आकार या द्रव्यमान नहीं था, जब हिग्स बोसोन भारी ऊर्जा लेकर आया तो सभी कण उसकी वजह से आपस में जुड़ने लगे और उनमें द्रव्यमान पैदा हो गया।
वैज्ञानिकों का माननाहै कि हिग्स बोसोन की वजह से ही आकाशगंगाएँ, ग्रह, तारे और उपग्रह बने।
अति सूक्ष्म कणो को वैज्ञानिक दो श्रेणियों में बाँटते हैं- स्थायी और अस्थायी। जो स्थायी कण होते हैं उनकी बहुत लंबी आयु होती है जैसे प्रोटोन अरबों खरबों वर्ष तक रहते हैं जबकि कई अस्थायी कण कुछ ही क्षणों मे क्षय होकर अन्य स्थायी कणो मे परिवर्तित हो जाते है।
हिग्स बोसोन बहुत ही अस्थिर कण है, वह इतना क्षणभंगुर था कि वह बिग बैंग(महाविस्फोट) के समय एक पल के लिए आया और सारी चीज़ों को द्रव्यमान देकर  क्षय हो गया, वैज्ञानिक नियंत्रित तरीक़े से, बहुत छोटे पैमाने पर वैसी ही परिस्थितियाँ पैदा कर रहे हैं जिनमें हिग्स बोसोन आया था।
वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह हिग्स बोसोन का क्षय होने से पहले उसका रुप बदलता है उस तरह के कुछ अति सूक्ष्म कण देखे गए हैं इसलिए आशा पैदा हो गई है कि यह प्रयोग सफल होगा।
लेकिन क्या हिग्स बोसान पाया गया है ? परिणामो की विवेचना करते है।
CERN मे हिग्स बोसान की खोज के लिये दो प्रयोग चल रहे हैं। वे कणो को तोड़कर किसी सुक्ष्मदर्शी से नही देखते है। ये कण इतने छोटे होते है कि मानव उन्हे दृश्य प्रकाश से देखा नही जा सकता है लेकिन उनके व्यवहार और गुणधर्मो से पहचाना जाता है। इन्हे पहचानने के लिये कणो के टकराव के पश्चात की स्थितियों के अध्ययन से एक चित्र तैयार किया जाता है। एक वर्ष के प्रयोगो के पश्चात दोनो प्रयोगों ने एक ऐसा कण पाया है जोकि हिग्स हो सकता है लेकिन वैज्ञानिक 100% विश्वास से ऐसा नही कह रहे है। कुछ वैज्ञानिक 94% प्रायिकता से, कुछ वैज्ञानिक 98% प्रायिकता से हिग्स होने की संभावना व्यक्त कर रहे है। ध्यान दे, यह क्वांटम विश्व है, यहा कोई भी परिणाम प्रायिकता मे होता है।
यह परिणाम अच्छे है लेकिन पूरी तरह से निश्चिंत होने लायक नही है। यह कुछ ऐसा है कि हमारे सामने एक धूंधली तस्वीर है, जो हिग्स के जैसे लग रही है लेकिन वह किसी और की भी हो सकती है।
लेकिन हम निर्णय क्यों नही ले पा रहे है ?
94% प्रायिकता के साथ हिग्स बोसान के होने की संभावना अच्छी लगती है लेकिन क्वांटम विश्व मे यह काफी नही है। 6% संभावना है कि यह परिणाम गलत हो! भौतिक वैज्ञानीक सामान्यत 99.9% (4 सीग्मा) पर उत्साहित होते हैं और 99.9999%(5 सिग्मा) पर उसे प्रमाणित मानते है। इस प्रायिकता मे परिणाम के गलत होने की संभावना 10 लाख मे 1 होती है।
लेकिन एक अच्छा समाचार यह है कि उच्च ऊर्जाओं पर उन्हे हिग्स बोसान के अस्तित्व का कोई प्रमाण नही मीला है। यह निश्चित नही है कि 125 GeV पर हिग्स बोसान है या नही लेकिन 125 GeV से उच्च ऊर्जा पर हिग्स बोसान का अस्तित्व नही है। यह अच्छा इसलिये है कि अब हिग्स बोसान की खोज का दायरा संकरा होते जा रहा है।
इस सब का अर्थ क्या है ?
CERN के वैज्ञानिक पूरे विश्वास से यह नही कह सकते हैं कि उन्होने हिग्स बोसान खोज निकाला है लेकिन वे इसके अस्तित्व को नकार भी नही सकते है। इसकी पूरी संभावना है कि उन्होने कुछ पाया है और वह हिग्स बोसान हो सकता है।

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