शनिवार, १० ऑक्टोबर, २०१५

बेरी बेरी रोगाची लक्षणे व कारणे

बेरी बेरी रोग 
 

परिचय:-
बेरी-बेरी रोग के कारण रोगी व्यक्ति का स्नायु संस्थान कमजोर हो जाता है। इस रोग की कई किस्में होती हैं।एक सूजन वाला बेरी-बेरी रोगदूसरा पुराना बेरी-बेरी रोग आदि। इस रोग के कारण हृदय की गति बन्द होजाती है तथा पेशाब रुक-रुक कर आता है। पुराना बेरी-बेरी रोग हो जाने पर शरीर के अधिकांश भीतरी तंतुओंका नाश हो जाता है। शरीर में विटामिन `बी´ की कमी होने से बेरी-बेरी रोग व्यक्तियों को हो जाता है और इसरोग के कारण कई रोगी व्यक्ति तो अन्धे भी हो जाते हैं

बेरी-बेरी रोग होने का कारण:-
  • यह रोग शरीर में विटामीन `बी´ की कमी के कारण होता है। विटामीन `बी´ की कमी के कारणरोगी का स्नायुसंस्थान कमजोर हो जाता है।
  • शरीर में विजातीय द्रव्यों के भर जाने के कारण व्यक्ति की आंखस्नायुसंस्थान और हृदय बहुतअधिक प्रभावित होते हैं जिसके कारण व्यक्ति को यह रोग हो जाता है।
  • सड़े चावलबिना चोकर का आटा तथा सरसों के तेल आदि में आर्जियोन मैक्सिक पान,हाइट्रोसियानिक एसिडव्हाइट ऑयल या पेट्रोलियम मिले होने के कारण से भी यह रोग व्यक्तिको हो जाता है।
बेरी-बेरी रोग होने के लक्षण:-

  • इस रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा कब्ज की समस्या रहती है।
  • रोगी व्यक्ति को भूख नहीं लगती है तथा उसकी पाचनशक्ति बिगड़ जाती है।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर में बहुत अधिक कमजोरी  जाती है।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैंरक्तहीनता (खून की कमी),सांस का फूलनाशोथ (सूजन), अतिसारज्वररक्तस्रावयकृतदोष तथा हृदय रोग आदि।
  • कभी-कभी इस रोग से पीड़ित रोगी का पेशाब रुक-रुक कर आता है।
बेरी-बेरी रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

  • बेरी-बेरी रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले इस रोग के होने केकारणों को दूर करना चाहिए और इसके बाद इस रोग का उपचार करना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को कई प्रकार की चीजेंलाल गेहूं की रोटीढकी के चावल का मांडसहित लाल भातलाल चिउड़ा पालकपोईफूलगोभीआलूगाजरशलजमसेमटमाटर,ताजी साग-सब्जियां उबला हुआ अंकुरित चनापपीताअनन्नासलेमूखूब पका हुआ केला,सेबसूखे मेवे आदि अधिक मात्रा में खाने चाहिए और फिर इस रोग का उपचार करना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को नमक बहुत ही कम खाना चाहिए यदि रोगी व्यक्ति नमक  खाएतो उसके इस रोग को ठीक होने में बहुत कम समय लगता है।
  • इस रोग का इलाज करने के लिए रोगी व्यक्ति को 2-3 दिनों तक ताजे फलों का रस प्रत्येक 3घण्टे के अंतराल पर रोगी को पिलाना चाहिए तथा इसके बाद रोगी के पेट को साफ करने के लिएउसको एनिमा देना चाहिए। इसके बाद 7 दिनों तक सुबह के समय फलों का रसदोपहर केसमय रसदार फल और दूध तथा शाम के समय में सप्ताह में किसी एक दिन भाजी का सलादतथा किसी एक दिन उबली हुई सब्जियों का सेवन कराना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में फल और दूध तथा दोपहर के समय में रोटी-सब्जी तथा रातके समय में सिर्फ फल या सब्जी देनी चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से रोगी व्यक्ति कुछ हीदिनों में ठीक हो जाता है।
  • रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में लगभग 5 मिनट तक अपने पेट पर भीगी मिट्टी का पट्टीलगाकर सोना चाहिए तथा सप्ताह में 1 बार एप्सम साल्टबाथ (पानी में नमक मिलाकर उसपानी से स्नान करनाकरना चाहिए। यदि रोगी को कब्ज की समस्या हो तो उन दिनों में रोगीको एनिमा देना चाहिए तथा उसके हृदय पर असर हो जाने पर रोगी को पूर्ण रूप से आराम करनाचाहिए। इसके बाद प्रतिदिन आधे घण्टे तक रोगी के शरीर की मालिश करने से उसका बेरी-बेरीरोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
जानकारी-
इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से बेरी-बेरी रोग का इलाज करने से रोगी व्यक्ति कुछ ही दिनों में ठीक होजाता है


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